शादी के बाद सेक्स लाइफ़ को कैसे सुधारे ?
क्या आपको अपने बायफ़्रेंड ( आज के पतिदेव) के साथ शादी के पहले बिताया वो समय याद है जब आपकी शादी उनसे नहीं हुई थी ? क्या अब शादी के दस साल बाद भी आप अपनी सेक्स लाइफ़ से संतुष्ट है ? यदि आप दोनो संतुष्ट है , तो इसका आनंद लीजिए । यदि नहीं तो ये जानकारी आपके लिए है ।
शादी के पहले आप अपने प्रियतम दोस्त के साथ घंटो बाते करते थे क्योंकि आपके पास साँझा करने के लिए इतना कुछ होता था । आप अपने प्यारे दोस्त से मिलने की तारीख़ और समय का बड़ी सकारात्मकता से प्रतीक्षा करते थे । अधिकतर मुलाक़ातें बड़ी रोमांचक और अनंत काल तक याद रखने योग्य थी । जिन लोगों ने शादी के पूर्व शारीरिक सम्बंध बनाए तो वो असीम आनंददायक होते थे और वही आनंद दोबारा प्राप्त करने की बड़ी प्रबल इच्छा होती थी । क्या अब शादी के दस वर्ष बाद आपको इनमे से कोई बात महसूस होती है ? यदि हाँ तो आप बहुत भाग्यवान है और अपने वेवाहिक जीवन का आनंद लेते रहिए । परंतु अनेको शादीशुदा जोड़ो में ऐसे अहसास शादी के कुछ वर्षों बाद उड़न छूँ हो जाते है । अब उनके वेवाहिक जीवन की दास्ताँ कुछ ऐसी होती है - सप्ताह में एक से दो बार या इस से कम सेक्स होता है जिसमें दस मिनट या कम अवधि का फ़ोरप्ले , दो तीन मिनट का सम्भोग और एक दो मिनट का आफ़्टर प्ले । इसके बाद कोई हैरानी की बात नहीं है कि अनेक शादीशुदा सम्बंध low sex मैरिज या no sex मैरिज की श्रेणी में आ जाते है ( इसका ये अर्थ नहीं है कि ऐसे मामलों में सेक्स होता ही नहीं । साल में दस बार या इस से कम बार सेक्स वाले सम्बंध no sex और पच्चीस से कम बार वाले सम्बंध low sex मैरिज की श्रेणी में आते है । ) क्या अपने पार्ट्नर से सेक्स की अपेक्षा से आप अभी भी रोमांचित हो जाते है ? शायद आप कहेंगे कि अब ऐसा नहीं होता । अब तो यह शादी शुदा ज़िंदगी के अन्य कर्तव्यों की तरह एक ज़रूरी कर्तव्य हो गया है जिसे निभाना आवश्यक है । चाहे ये सप्ताह में दो बार हो या महीने में एकबार- ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ता । शादी के बाद दुनिया के अधिकतर जोड़ो की यही दशा होती है । सवाल ये है कि ऐसा क्यों हुआ? क्या हुआ? मेरे एक मरीज़ की कहानी इस से मिलती जुलती है । इस महिला के विवाहपूर्व तब के बोयफ़्रेंड अब के हसबेंड से बेहतरीन सम्बंध थे । उनके बीच अत्यंत रोमांचक तथा जुनूनी सेक्स भी कई बार हुआ परंतु शादी के बाद छः वर्ष तक उनमे कोई शारीरिक सम्बंध नहीं बने । यहाँ तक कि गर्भ धारण के लिए भी उन्हें सहायक प्रजनन तकनीक का सहारा लेना पड़ा । विश्वास करना कठिन है परंतु यही सत्य है । क्या अब बार बार उसी पार्ट्नर से उसी तरीक़े से सेक्स करने से दिमाग़ में कोई डोपमीन नहीं बनता यानी ख़ुशी नहीं होती । शादी के बाद सेक्स को क्या हो जाता है ?
हम में से अधिकतर ने सिनमा स्क्रीन पर हीरो हीरोइन के बीच अनेक मूवीज़ में जुनूनी प्यार और सेक्स देखा है जिसमें सेक्स शानदार और क्लाइमैक्स ज़बरदस्त होता है और जिसमें प्यार करने वाले आसमान की सैर करते हुए से प्रतीत होते है । कुछ लोगों ने पॉर्न मूवी में देखा होगा कि सेक्स काफ़ी देर तक चलता है, काफ़ी ज़्यादा मात्रा में वीर्य स्खलित होता है और धमाकेदार क्लाइमैक्स होता है । अनेक लोग ऐसे हीरो की नक़ल करना चाहते है । परंतु वास्तविक जीवन सिनमा से अलग होता है । अधिकतर लोगों के जीवन से वो जुनून , रोमांस , सेक्शूअल केमिस्ट्री तथा हॉट सेक्स केवल छः महीने से दो साल तक रहता है । इसके बाद स्थिति बदल जाती है । दोनो को लगने लगता है कि उनकी सेक्स लाइफ़ में वो जुनून और तड़प नहीं है , जो पहले हुआ करती थी । रोमांटिक सेक्स की उम्र वास्तव में बहुत कम होती है । कामेच्छा केवल रोमांटिक सेक्स के सहारे नहीं टिक सकती । कामेच्छा सेक्शूअल और भावनात्मक घनिष्टता पर निर्भर होती है । कामेच्छा सही रखने के लिए घनिष्ठता , बिन माँगी अतरंगता और बेडरूम में कामुकता अत्यंत आवश्यक है । कामेच्छा पारस्परिक होती है , एकाकी नहीं । पार्ट्नर्ज़ को एक घनिष्ठ टीम की तरह सोचना , बात करना ,कार्य करना और महसूस करना आदि सीखना आवश्यक है । दोनो पार्ट्नर को एक दूसरे की सेक्शूअल फ़ीलिंग और कामेच्छा को बढ़ाना होगा ।
वास्तव में स्वस्थ सेक्शूऐलिटी क्या है -
- सेक्स केवल जननांगो , सम्भोग तथा क्लाइमैक्स तक सीमित नहीं है । लेंगिकता में आपकी मनोदृष्टि , भावनाएँ , अनुभूति एवम् नैतिकता समाहित होती है । मानव जीवन का यह एक प्राकृतिक और स्वस्थ तत्त्व है । इस में नकारात्मकता और अपराधबोध का कोई स्थान नहीं है
- लेंगिकता आपके व्यक्तित्व का अभिन्न अंग है । आपको अपने शरीर के बारे में अच्छा महसूस करने का और स्वयं को सेक्शूअल व्यक्ति समझने का पूरा अधिकार है
- लेंगिकता का सार आनन्दमय स्पर्श के लेनदेन में निहित है ।
- आप को अपनी लेंगिकता व्यक्त करनी चाहिए जिस से आपके अंतरंग संबंधो में वृद्धि हो ।
वास्तव में अधिकतर कपल्ज़ में पाया गया है कि शादी के कुछ समय के बाद सेक्स में उत्तेजना नहीं रहती । ये भी अन्य कई कार्यों की तरह एक ऐसा कार्य बन के रह जाता है जिसे तो करना ही पड़ेगा । इसका कारण है असीमित अपेक्षा रखना । शादी के पहले तक किसी महिला को देखने मात्र से पुरुष के लिंग में कठोरता आ जाती थी यानी इसके लिए कोई विशेष प्रयास नहीं करना पड़ता था । वो बिलकुल आराम से एक से अधिक बार शारीरिक सम्बंध बना सकता था । महिला भी आत्म विश्वास से भरपूर थी क्योंकि अपने पुरुष साथी में ऐसा बढ़िया रेस्पॉन्स पैदा करना उसके बायें हाथ के खेल जैसा था । परंतु अब सब बदल गया है । कपल को कई ऐसे मामलों के बारे में विचार करना पड़ता है जो पहले नहीं थे ,जैसे वित्त से सम्बंधित , गर्भधारण और नए वातावरण से तारतम्य बिठाना , आदि से लेकर आपस में थोड़ी बहुत असहमति होने की स्थिति का सामना करना ,आदि ,आपके लिए ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हो जाते है । पुरुष और स्त्री दोनो अक्सर इन्ही बातों में उलझे रहते है । कभी कभी आपस में काफ़ी बहस भी हो जाती है जिसको नज़रअन्दाज़ करना ख़तरे से ख़ाली नहीं होता । सेक्स की तरफ़ से तो ये लोग पूरी तरह आश्वस्त रहते है कि ये तो हो ही जाएगा ,क्योंकि पहले भी वो स्वतः ही हो जाता था अतः दोनो की दृष्टि में सेक्स का स्थान वरीयता सूची में बिलकुल नीचे चला जाता है । अब उन्हें नई परिस्थिति का सामना करना पड़ता है । सेक्स अब स्वतः और इतनी आसानी से नहीं होता , जैसे पहले हो जाता था । पुरुष के लिंग में कठोरता के लिए महिला को काफ़ी प्रयास करना पड़ता है जैसा करना अजीब सा लगता है ।
मेरे एक मरीज़ ने तो यहाँ तक कहा ,” मैं कैसे भी अंतवस्त्र पहन लू , कितना भी प्रयास करूँ , इन्हें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता और इनके लिंग में कोई कठोरता नहीं आती । पहले तो ऐसा नहीं था ।” वो ठीक कह रही थी कि उसने अनेक बार असफल कोशिश की होगी जिस से उसकी कुंठा और निराशा को समझा जा सकता है ।
परंतु सवाल है कि ऐसा हुआ क्यों?
जब वो 20-30 की आयु के थे तो आमतौर पर सेक्स आसानी से और बहुत अच्छा हो जाता था । शादी के कुछ समय बाद लिंग में स्वतः कड़कपन आना बंद हो गया और तो और, कई बार तो क्लाइमैक्स भी नहीं हुआ । इस से दोनो को निराशा हुई और महिला कभी कभी ऐसा वैसा बोल देती थी जैसे “आप किसी काम के नहीं हो ! “ “ आप मुझे संतुष्ट नहीं कर पाते “ “ आप तो नामर्द हो “ आदि । ये सुनना बड़ा अटपटा , शर्मिंदा और डिप्रेस करने वाला था । पति के मन में ऐसे ख़्यालों ने घर कर लिया कि वास्तव में वो पत्नी को संतुष्ट करने में समर्थ नहीं है , जिस के कारण सेक्स सम्बंध से पहले ही उसे काफ़ी तनाव हो जाता था । इसके बाद फिर वही सब कुछ होता था ,जिस से उसे विश्वास हो गया कि वो सेक्स के लायक़ नहीं है । अब उसने शर्मिंदगी से बचने के लिए सेक्स को टालना अथवा बचना शुरू कर दिया । सेक्स से पहले वाले तनाव को anticipatory anxiety कहते है और पति के सेक्स से बचने वाले व्यवहार को avoidance response कहते है । पत्नी के ताने उसे बहुत खलते थे और सेक्स न करना उसके लिए बदला लेने जैसा था । सेक्स न करने से धीरे धीरे सेक्स की इच्छा कम हो गयी परंतु उसकी पत्नी की कामेच्छा तो सामान्य एवम् उस से ज़्यादा थी । कामेच्छा में इतने फ़र्क़ के कारण उनमे झगड़े होने लगे और एक दूसरे पर दोषारोपण एक आम बात हो गयी । यही दुश्चक्र चलता रहा और एक दिन पत्नी ने ultimatum दे दिया कि या तो वो अपना उपचार करवा ले या फिर वो छोड़ कर चली जाएगी । ये बड़ा common और निराशाजनक घटनाक्रम है जिस के परिणाम अनर्थ कारी ही होते है ।
वो लोग क्या ग़लती कर रहे थे ?
1- अनजाने में सेक्शूअल संकेतो से शरीर में वैसे ही response की अपेक्षा रख रहे थे जैसे 20-30 वर्ष की आयु में था ।
2-समय के साथ sexual संकेतो से शरीर में होने वाले परिवर्तनों से अनभिज्ञ वो कुंठा , अवास्तविक अपेक्षा , क्रोध, एक दूसरे पर दोषारोपण और टालमटोल के मकड़जाल में उलझते जा रहे थे ।
3- इन सब से मन में दबे हुए क्रोध के शिकार हो रहे थे जिस का का सामना उन्होंने कभी भी नहीं किया ।
ये सब शादी के बाद कामेच्छा के कम होने का सटीक और निश्चित formula ही तो है ।
शादी के बाद कामेच्छा को क्या हो जाता है -
कई बार मज़ाक़ में कहा जाता है कि शादी होने से कामेच्छा ख़त्म हो जाती है। हो सकता है कि ये सच हो परंतु शादी के बिना भी साथ रहने वाले जोड़ो में भी दो वर्ष
के बाद शारीरिक सम्बंध “लो सेक्स” या “नो सेक्स “की श्रेणी में आते देखे गए है ।
ऐसा क्यों होता है ?
रोमांटिक इश्क़ में लड़का लड़की सप्ताहंत में या विशेष मौक़े पर मिलते है । उनके पास एक दूसरे के लिए पर्याप्त समय , ऊर्जा और उत्साह होता है । नयापन , सामाजिक रूप से अवैध और जोखिम भरा ,अपने पार्ट्नर का दिल जीतने की चाहत और रोमांटिक इश्क़ से शादी पूर्व सेक्स जन्म लेता है , परंतु यह अस्थिर होता है । ऐसे प्यार में नौकरी , कपड़े धोने और अन्य कार्यों से उन्हें कोई सरोकार नहीं होता । ऐसा लगने लगता है कि ज़िंदगी भर ऐसा ही होता रहे । परंतु शादी के बाद तो सप्ताह में सातों दिन साथ रहते हुए जीवन की हर छोटी बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है । ऐसे में सेक्स को वांछित उच्च वरीयता नहीं मिलती और वो अतिरिक्त ऊर्जा भी सेक्स से ग़ायब हो जाती है । टीवी देखने , घर का सारा काम निपटाने और ऑफ़िस का कोई बचा काम करने के बाद होने वाला ये एक क़ार्य मात्र रह जाता है । महिला के कपड़ों में आटे और मसाले की महक से कामेच्छा निश्चित रूप से कम हो जाती है । विवाह पूर्व सेक्स का अब के सेक्स से मुक़ाबला निश्चय ही निराशाजनक होता है । सेक्स में आयी कमी से कपल को जहाँ कुंठा होती है , वहीं शर्मिंदगी और क्रोध भी आता है । शादीशुदा ज़िंदगी में सेक्स बिलकुल अलग ढंग की सोच , अनुभूति और एक टीम की तरह सोचने पर टिका होता है । रोमांटिक प्यार का स्थान परिपक्व आत्मीयता ले लेती है । जुनूनी सेक्स का स्थान अब आत्मीयता , अभियाचना रहित आनंद तथा कामुक क्रियायें ले लेती है ।
शादी के बाद कामेच्छा कम होने के पीछे कई बाते हो सकती है -
1- क्रोध - कई कपल सेक्स का उपयोग आपसी बहसबाज़ी के बाद सुलह के लिए करते है । इसमें कोई हर्ज भी नहीं , जब तक आपस में भावनात्मक दुर्व्यवहार और शारीरिक ज़बरदस्ती न हो । लम्बे समय तक क्रोध रहने से शादीशुदा और सेक्शूअल सम्बंध एकदम ख़राब हो जाते है । ऐसा क्रोध भावनात्मक जुड़ाव को भी तोड देता है । आपका जीवन साथी अब एक विश्वसनीय और आत्मीय मित्र नहीं रहता ।
स्वयं को बेइज़्ज़त महसूस करना ऐसे क्रोध का मुख्य स्रोत होता है । एक स्त्री जो पति को छोटा दिखाने पर तुली ही हो , वो पति का लिंग छोटा होने की शिकायत कर सकती है । पति के दिल पर चोट लगती है और वो बार बार इसी बारे में सोचता रहता है। वह अत्यंत आहत महसूस करता है जिस से क्रोध और अलगाव की भावना जन्म लेती है , परिणामस्वरूप आत्मीयता समाप्त हो जाती है और सेक्स से दूर भागने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है । ऐसे ही महिला को भी सेक्स सम्बंध में ज़ोर ज़बरदस्ती पर क्रोध आ सकता है । ये कामेच्छा में कमी का मुख्य कारण हो सकता है । इसे वैवाहिक बलात्कार तो नहीं कह सकते लेकिन इस से परस्पर आनंददायक सेक्स संबंध की नीव हिल जाती है । पूछने पर पति हमेशा ज़बरदस्ती करने से मुकर जाता है या फिर पत्नी पर ही उसकी सेक्स इच्छा पूरी न करने का आरोप लगा देता है । विवाहेतर सम्बंध भी ऐसे क्रोध का स्रोत हो सकते है ।यहाँ तक कि सम्बंध समाप्त होने पर भी पति अपने को असुरक्षित अनुभव करता है, जिसे वो क्रोध के रूप में प्रदर्शित करता है । परिणामस्वरूप कुछ पुरुष सेक्स करना बंद कर देते है और कई दूसरे सेक्स में ज़बरदस्ती करने लग जाते है । क्रोध में किए सेक्स से प्यार की भावनायें मर जाती है और महिला अलग - थलग महसूस करती है और फिर कामेच्छा कम होने लगती है । आपका साथी आहत और निराश महसूस कर सकता है और शादीशुदा सम्बंध चोटिल हो जाते है । बहरहाल ग़ुस्सा किसी भी कारण से हो , सेक्स के लिए अत्यंत नुक़सानदेह ही होता है ।
2- पछतावा - किसी पुरुष को सेक्स वर्कर के पास जाने का पछतावा हो सकता है । ये राज़ वो अपने तक तो रखता है परंतु परिणामस्वरूप पत्नी का सामना करने से डरने लगता है । उसे भय होता है कि यदि उसकी पत्नी ये जान गयी तो उसकी इज़्ज़त कम हो जाएगी । उसका आत्मविश्वास कम होने लगता है जिस से पत्नी के साथ कामेच्छा में कमी आ जाती है । महिलाओं में भी ऐसा हो सकता है जैसे विवाहेतर सम्बंध या किसी अन्य पुरुष की कल्पना से पछतावा हो सकता है । पछतावे से आत्मीयता और आनंद कम हो जाता है ।
3- चिंता या उत्कंठा - सेक्स और आनंद एक ही सिक्के के दो पहलू है । सेक्स और प्रदर्शन का मेल विषैला होता है । अधिकतर समस्याओं के पीछे अग्रिम व्यग्रता और प्रदर्शन का तनाव होता है । अग्रिम व्यग्रता का अर्थ है - असफलता के भय से पीड़ित होकर सेक्स का प्रयास करना या दूर भागने की इच्छा रखना , बेज़्ज़ती का भय होना या सेक्स को कार्य समझकर जल्दी निपटाने को आतुर रहना आदि सेक्स की इच्छा को ख़त्म कर देते है । ये तो ऐसा हुआ कि तैराकी पर जाने से पहले ही 100 kg का भार लदा हो । सेक्स में प्रदर्शन की चिंता का सेक्स उत्तेजना और लिंग की कठोरता पर नकारात्मक प्रभाव होता है । पुरुष सेक्स को एक पास - फेल टेस्ट के रूप में देखने लगता है । सेक्स का मक़सद आनंद प्राप्ति न होकर एक प्रदर्शन बन जाता है जिसमें उसके अंक दिए जाने है । इस से कामेच्छा और उत्तेजना दोनो कम हो जाते है ।
4- अवरोध ( Inhibition) - इन से सेक्स की मस्ती ख़त्म हो जाती है । अवरोध मनोवेज्ञानिक , संबंधो में या सेक्शूअल हो सकता है । उदाहरण के लिए अपने शरीर के बेढंगे होने का अहसास, सेक्स प्रारम्भ करने से कतराना , जीवनसाथी के समक्ष उन्मुक्त न महसूस करना , कपड़ों के बिना होने में संकोच , कोई कामुक क्रिया को try करने में संकोच करना तथा अस्वीकार किए जाने का भय आदि अवरोध को जन्म दे सकते है ।
5- तरह तरह के वहम - वहम से सेक्स का मूड ख़राब हो जाता है । ये OCD का लक्षण हो सकता है । ऐसे विचार स्वच्छंदता और संवाद में बाधा बन जाते है । जैसे पति या पत्नी को वीर्य से घिन होती हो तो वो टिशू पेपर पास में रखेगा / रखेगी और उसका सारा ध्यान सेक्स में न होकर चादर पर होगा कि वहाँ वीर्य न गिर जाए । महिला को भी ऐसी सोच हो सकती है कि पत्नी और माँ को ओरल सेक्स नहीं करना चाहिए । कई महिलायें सेक्स के बाद योनांगो को पानी से धोने की हड़बड़ी में होती है । ऐसी सोच गंदगी की निरर्थक विचार धारा के कारण होती है । वास्तव में आपके योनांगो से ज़्यादा कीटाणु आपके मुँह में होते है ।
6- शर्म - ये पुरानी नकारात्मक सोच और भावनाओं पर आधारित होती है । जैसे बचपन में यौन उत्पीड़न का शिकार होना , किसी करीबी व्यक्ति द्वारा बलात्कार का शिकार होना , हस्तमैथुन की ग्लानि अनुभव करना या असामान्य सेक्शूअल परिकल्पना करना , कोई यौन रोग से पीड़ित होना, गंदे फ़ोन आने का सामना करना या यौन हिंसा का शिकार होना आदि । ये वो शर्मसार करने वाली बाते है जिनका कामेच्छा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है ।
7- मनोरोग का होना - भारत में लगभग 20% जनसंख्या को कोई मनोरोग होता है और जिन में से एक तिहाई या आधे कभी भी उपचार नहीं करवाते । इन बीमारियों या इनकी दवा के साइड इफ़ेक्ट के कारण भी कामेच्छा में कमी आ सकती है । ऐसे ही कई शारीरिक रोग जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप या हृदय रोग भी कामेच्छा में कमी ला सकता है ।
9- पार्ट्नर में सेक्स समस्या - अगर एक को सेक्स समस्या है तो दूसरे को भी असर हो सकता है । शीघ्रपतन से पीड़ित व्यक्ति की पत्नी को कामेच्छा में कमी हो जाएगी ताकि पति को शर्मसार न होना पड़े । यदि ऐसा न हो तो आपस में गम्भीर झगड़े होंगे , आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो जाएगा और कभी कभी तलाक़ की नौबत आ सकती है ।